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मेरी कविता / ऋचा दीपक कर्पे

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मेरी कविता
कोई मैगी नही
जो दो मिनट में पक जाए!

ये तो एक स्वादिष्ट पकवान है,
चटपटा...लज़ीज़
समय लगता है इसे बनाने में।

अनुभव की कढाही में,
विचारों की आँच में,
धीरे धीरे पकती है...

चुन कर लाती हूँ
मन की बगिया से
कुछ ताजा अहसास...
कुछ भाव...कुछ शब्द खास

फिर लगती है
रस छंदों की बघार...
कुछ विदेशी शब्दों का तडका
और
लय-तुक स्वादानुसार...

धीमी-धीमी भाँप में सीजती है
सुनहरी होती है

चूल्हे से उतारने के पहले
एक बार फिर सोचती हूँ,
कि कुछ भूली तो नही...

रंग देखती हूँ
महक लेती हूँ...
पूरी तरह से जाँच परखकर
विराम चिन्हों से सजाकर
परोसती हूँ
मेरी कविता...