भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीना चाहती हूँ / ऋचा दीपक कर्पे
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:42, 4 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋचा दीपक कर्पे |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नीले-से आसमान पर,
हलके सफेद बादलों की तरह,
हरी-भरी धरती के अंक से,
नाजुक से अंकुर की तरह,
गहरे-से सागर में,
सींप के मोती की तरह,
अधखिले-से फूल पर,
चंचल तितली की तरह,
शीतल मंद पवन में,
आजाद पंछी की तरह,
उस चित्रकार के चित्र में,
चटख रंगों की तरह,
उस कवि की कविताओं में,
नवीन कल्पनाओं की तरह,
एकांत किसी देवालय में,
तेजोमय दीप की तरह,
तैरना चाहती हूँ, उगना चाहती हूँ,
बसना चाहती हूँ, मंडराना चाहती हूँ,
उड़ना चाहती हूँ, रचना चाहती हूँ,
उमड़ना चाहती हूँ, जलना चाहती हूँ,
हाँ, मैं जीना चाहती हूँ...!