भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होली दोहे / मोहित नेगी मुंतज़िर

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:51, 6 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहित नेगी मुंतज़िर |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शरद गया है बीत अब , खिली बसंत बहार
 जीवन मे लाया खुशी , रंगों का त्योहार।
 
फूटी कोंपल पेड़ पर,रंग बिरंगे फूल
बागों मे डलने लगे ,अब बासंती झूल।
 
बच्चे बूढ़े झूमते ,मन मैं ले उल्लास
 कैसा है मौसम अहा ।कैसा है अहसास।
 
भर पिचकारी रंग से, उड़ा अबीर गुलाल
 खेल जी भर कर सखा , हो जा तू बेहाल।