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होली दोहे / मोहित नेगी मुंतज़िर

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शरद गया है बीत अब , खिली बसंत बहार
 जीवन मे लाया खुशी , रंगों का त्योहार।
 
फूटी कोंपल पेड़ पर,रंग बिरंगे फूल
बागों मे डलने लगे ,अब बासंती झूल।
 
बच्चे बूढ़े झूमते ,मन मैं ले उल्लास
 कैसा है मौसम अहा ।कैसा है अहसास।
 
भर पिचकारी रंग से, उड़ा अबीर गुलाल
 खेल जी भर कर सखा , हो जा तू बेहाल।