भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शून्य से ज़्यादा / रोहित आर्य

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:22, 7 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रोहित आर्य |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शून्य से ज़्यादा नहीं हैं, कुछ भी हम सँसार में,
क्या अहम् है जो हमारे, सिर पै चढ़कर बोलता।

सिर्फ दो कौड़ी है कीमत, तुच्छ मानव देह की,
किसलिए ख़ुद को हे मानव, रत्न जैसे तोलता।

प्यार के दो शब्द काफ़ी, हैं जगत को जीतने,
किन्तु तू अपनी जुबां से, शब्द कड़वे बोलता॥

देख ईश्वर को ये दुनियाँ, सौंप दी तेरे लिए,
किन्तु फिर भी छीनने को, तू जहाँ में डोलता॥

खूबसूरत प्रकृति थी, उसने तुझको सौंप दी,
बनके दुश्मन किसलिये तू, विष इसी में घोलता॥

बाँटकर तो देख ले, आनन्द अद्भुत पायेगा,
क्यों न 'रोहित' द्वार तू, अपने हृदय के खोलता॥