आज़ाद / रोहित आर्य
लिए जिगर में हरदम ही फौलाद रहा है,
मरने तक आजाद मेरा आजाद रहा है॥
राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह, शेखर, बिस्मिल,
आज़ादी लाने की खातिर जल गये तिल-तिल।
सबने अपनाया आज़ादी की आदत को,
सदा बने गोरों की खातिर थे आफत वो।
ऐसे वीरों से भारत आबाद रहा है॥1॥
मरने तक...
माता जगरानी का वह प्यारा सपूत था,
सीताराम तिवारी का साहसी पूत था।
जिसने मात-पिता का कर दिया नाम अमर है,
बब्बर शेर हमारा वही चन्द्रशेखर है।
क्रूर काल से जिसका सदा विवाद रहा है॥2॥
मरने तक...
बचपन से ही शौर्य भरा था उसमें अनुपम,
सिंह गर्जना सुनकर उसकी काँपा लन्दन।
बच्चा था तब बैंत बदन पर खाए,
पिटते-पिटते माँ की जय के नारे गाये।
वन्दे मातरम् का करता घननाद रहा है॥3॥
मरने तक...
साहस उसमें कूट-कूट कर भरा हुआ था,
दुनियाँ का दादा गोरा भी डरा हुआ था।
बब्बर शेर के जैसे सदा निकलता था वो,
धरती कंपन करती ऐसे चलता था वो।
उसके कारण इंकलाब का नाद रहा है॥4॥
मरने तक...
चूक नहीं सकता था उसका कभी निशाना,
सम्मुख आया उसका निश्चित था मर जाना।
सारी उमर रहे गोरे उससे थर्राते,
सुनकर उसका नाम पेंट गीली कर जाते।
जो गोरा सम्मुख आया बर्बाद रहा है॥5॥
मरने तक...
अंतिम समय अकेला घेरा शेर बब्बर को,
किन्तु गोलियाँ चला खोदता रहा कबर को।
अंतिम बची हुई गोली मस्तक पर मारी,
बिखर गया बनकर स्वतंत्रता की चिंगारी।
पिस्टल से करता हरदम संवाद रहा है॥6॥
मरने तक...
होकर के बलिदान गिरा जब धरा पै शेखर,
गोरे रहे कांपते तब भी थर-थर-थर-थर।
पास नहीं आए फिर से न ये जग बैठे,
पता नहीं है कब किसकी गर्दन को ऐंठे।
सिंह गर्जना का अनुपम अनुवाद रहा है॥7॥
मरने तक...
देशवासियो सुन लो उसको भूल ना जाना,
मस्तक उसके चरणों में तुम सदा झुकाना।
जीवन भर उसकी गाथा को पढ़ते रहना,
"रोहित" आँसू टपके उसे टपकने देना।
शेखर सबके दिल में जिंदाबाद रहा है॥8॥
मरने तक...