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पढ़ो पढ़ो / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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रात दस बजे सोती दीदी,
सुबह पांच पर उठ जाती है।

हिंदी पढ़ती, इंग्लिश पढ़ती,
करती ढेर सवाल।
गणित विषय में सौ में सौ,
पा जाती हर साल।
सात साल से कक्षा में वह,
पहले क्रम पर ही आती है।

मुझे अभी तक अच्छे लगते,
हाथी घोड़े रेल,
शाला तो मुझको लगती है,
बंद बंद-सी जेल।
रोज डांटते बापू, माँ बस,
पढ़ो पढ़ो ही चिल्लाती है।

खाकर रोज डांट स्यानों की,
सोच लिया है आज।
पुस्तक के तारों पर छेड़ूं,
अब पढने के साज।
पढ़ लिख कर कुछ तो बन जाओ,
दीदी भी तो समझाती है।

कभी कभी लगता है कितना,
निष्ठुर यह संसार।
बचपन में ही बच्चों पर क्यों,
हाथी जैसा भार।
जग वालों को क्यों नन्हों पर,
दया नहीं बिलकुल आती है?