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तुम्हारी बारिश / प्रवीन अग्रहरि

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अक़्सर मेरे अन्तस् में
तुम बारिश बन कर
जोर-जोर से बरसती हो,
तब मेरी यादों के आसमान में
इंद्रधनुष का एक पुल निर्मित हो जाता है।
मैं उसके सहारे अपने अतीत पर जाता हूँ
और उलीचने लगता हूँ मन के आँगन में भरी तुम्हारी बारिश।
तुम बरसती रहती हो
 मैं उलीचता रहता हूँ।
इस तरह हम दोनों रात गुजार देते हैं।