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क्यों नहीं स्वीकारते हम / अंशु हर्ष
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क्या जीवन उचित है पानी जैसा
कहने को शीतल जल
पर तेज बहाव ले जाता है
मानवता ओर शीतलता।
यु तो बेरंग पानी
पर हर रंग में घुल जाये
शायद सीखाता है,
हर परिस्थिति में सामंजस्य बैठाना।
जब मंजिल नजर आती है तो
राह में चाहे चट्टान आये या मैदान
बना लेता है अपनी राह सबको चीरते हुए।
कुछ गुण ओर कुछ अवगुण
पर स्वीकार्य है सभी को
ओर यही कहा जाता है
जल है तो जीवन है।
फिर क्यों नहीं स्वीकारते हम
अपनों को अवगुणों के साथ?