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यादों की बात / मनीष मूंदड़ा

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मन शाम से कुछ बैचेन-सा
सहमा हुआ
मेरी आँखों की खिड़कियों से बाहर की और झांकता
एक तसल्ली की तलाश में
शायद तुम्हारे साथ होने की तसल्ली
अक्सर वह मुझसे बात करता हैं
लेकिन आज वह चुप हैं
गुम है अपने आप में
पलकों के किनारे ठहरा हुआ आँसू
इंतजार में हैं उस बात के
जो तुम्हारी यादों की बात हैं
कहने को मन मेरा हैं
पर बात तो तुम्हारी हैं।