भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आडम्बर / मनीष मूंदड़ा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:47, 21 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष मूंदड़ा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन जिसे लोग कहते हैं
जिया किसने है?
एक दूसरे को ढोते हैं
जिस ताने बाने की बात तुम करते हो
वो झुलसा पड़ा है
बरसों बरस की आग से
ना कोई डोर बची ना कोई सिरा दिखता हैं
बस
बाहरी कृत्रिम रोशनियों से चमकते
अंदरूनी अंधेरों को छुपने छिपाते
चले जा रहें हैं
कहीं दूर बड़ी तेजी से
सब आडम्बर के तानेबाने में साँसे लेते