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मैं अकेला नहीं हूँ / मनीष मूंदड़ा

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मैं अकेला नहीं हूँ
क़तई भी नहीं
जैसा तुम सोचते हो वैसा तो बिलकुल भी नहीं
साथ मेरे हैं मेरे सपने
मेरी ख़ुशमिजाजी
मेरी महत्त्वाकांक्षाएँ
हमेशा मेरे मन को टटोलते, बहते ये गहरे बादल
वो शाख़ पर बैठी चहकती गौरैया
उससे भी मेरा रिश्ता हैं
मेरे आँसू मेरे साथी हैं,
ये उगता सूरज,
ढलती शामें,
वो दूर गगन पर घट-बढ़कर निकलता चाँद
रातों में मेरा साथी होता हैं
और जब वह नहीं होता
तो अमावस होती है मेरी सहेली
मुझसे अपनी बातें करती
कभी मेरी भी सुनती
ये हवाओंसे मचल कर खिलखिलाती शाख़ें
देखो मेरी रहबर हैं
बरसों बरस की
मैं अकेला बिलकुल नहीं हूँ
सभी तो हमेशा से मेरे साथ थे
और अब भी हैं
मेरे अपने, मेरे साथी
फिर बताओ मैं अकेला कहाँ?