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कल फिर लौटूँगा / मनीष मूंदड़ा

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आज की शाम भी अब बस ख़त्म होने को है
तुम्हारे इंतजार की एक और हद पार की है मैंने
मेरी थकी आँखों की परतों में ठहरे ये आँसू
अब रोके नहीं रुकेंगे
मेरी कहाँ सुनेंगे
मेरे झुके कांधों पर अब ये यादों का बोझ
कब तक सबर करेगा?
सहमी-सी हवाएँ भी अब मुझसे दूर मुड़ चली हैं
सूने गहरे पेड़ों की काली परछाइयाँ
मेरे अंदर को तलाशती
सभी कोई
अब बदलाव चाहतें हैं
मेरी जि़द्द का विराम चाहतें हैं
मैं अपने हाँथों को खोले
कल फिर आने का प्रण करूँगा
मैं कल फिर लौटूँगा...