भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रिश्ते / अंशु हर्ष

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:24, 22 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंशु हर्ष |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जानते हो कुछ रिश्तों की मुश्किल
उलझे है जलेबी जैसे
डूबे है मीठी चाशनी में भी
एक ने कहा पाव भर चाहिए
और दुसरा ढाई सौ ग्राम मांगता है...
स्वाद वही बात वही लेकिन
ज़िन्दगी है ना जलेबी जैसी
मीठी लेकिन उलझी हुई