भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सब तेरा / अंशु हर्ष
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:25, 22 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंशु हर्ष |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ये सूफ़ियाना अंदाज़
मुझे इतना मेरा लगता है...
कि उसे देख कर ऐसा लगता है
इस अंदाज को आत्मसात कर लूं मुझमें कहीं
ये अंदाज यही सिखाता है ना
ना पाने की खुशी ना खोने का गम
बहता चल ज़िन्दगी की रौ में
सब तेरा का भाव लिए...