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चाँद से बातें / अंशु हर्ष

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कल रात अचानक
एक दस्तक हुई मेरी पलकों पर
आँख खुली तो खिड़की के बाहर
बादल और चाँद के साथ का
सुहाना मंज़र बहुत सुंदर नज़र आ रहा था
देखा उसे नींद को रोक कई देर तक
जानते हो उस अधूरे चाँद में की मुस्कुराहट में
तुम्हारी मुस्कुराहट का अक्स नज़र आ रहा था
ख़्वाब नहीं था एक सच्चा अहसास था
एक सवाल खड़ा कर गया वो लम्हा
कि क्या याद का वो पल
मीलों दूर भी जिया जा रहा था ....
क्यों मुझे वो अधूरा चाँद बेवजह
तुम्हारी याद दिला रहा था