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पांचाली / संतोष श्रीवास्तव

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मैं पाँच इन्द्रियों की दासी
पाँचाली
सख्त हैं इन्द्रियों के कानून मेरा कहना, सुनना, देखना, सूँघना, चखना मेरा कहाँ है? इसीलिये दाँव पर लगा दी जाती हूँ देह की बिसात पर
फेंके हुए पाँसे
वापिस नहीं लौटते मुझे हार जाती हैं इन्द्रियाँ सुबक कर रह जाता है समय
इतिहास में दर्ज़ होने के पहले मैं पाँचाली महाभारत की दोषी
करार दी जाती हूँ