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यादों में बंधे हुए पल / संतोष श्रीवास्तव
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तुम्हारी याद आई
वासंती पलों के बिखर गए रेशे
मन तड़पा फिर से
तितलियाँ पकड़ने को
फिर होने को लहूलुहान
कांटे से लगे हुए देह पर
खरोंचों के बेमतलब ही कई निशान
फिर से तैयार होने लगा मन
खाने को धोखे सुर्खाबो के
पोर पोर बजते से
बियाबान थमे
यादों की धूप में नहाए पल
वासंती फूल बन सजे
बंधे हुए पन्ने फिर उड़ने लगे
जिंदगी की बंद किताब के