Last modified on 23 मार्च 2020, at 22:04

बेचैन है इतिहास / संतोष श्रीवास्तव

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:04, 23 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मांडवगढ़
पहाड़ियों के घुमावदार रास्ते
अटे पड़े हैं अधूरी प्रेम कहानी से
हर तरफ बिखरे हैं मोहब्बत के रंग
बेखुदी में चूर है कायनात

मांडू का हर जर्रा तड़प रहा है
आह! क्यों न हुआ ऐसा
कि तख्तो ताज की नजरें
वापस लौट जाती
इश्क की अंगूठी का हीरा
नहीं चीरता रूपमती का दिल

दीवाना आशिक
रूपमती की समाधि पर
सिर पटक-पटक कर
जान नहीं दे देता

नर्मदा फटी-फटी आंखों से
नहीं देखती
युद्ध, प्रेम, संगीत और कविता के
अद्भुत मेल से उपजी
जादुई प्रेम कहानी

लिल्लाह ...
क्यों इश्क के फलसफे में
छुपी रहती हैं काली नजरें
ख्वाबों को उधेड़ने की
नुकीली साजिशें
क्यों नहीं जी पाती रूपमती
क्यों तख्त की नजरों से
हलाक हो जाता है बाज बहादुर

मेरे सवाल टकरा रहे हैं
मांडू महल से
बैचैन है वक्त की पेशानी पर खुदा इतिहास
सवाल फिर भी सर उठाए हैं
मांडव मालवा से गुलजार है
या मालवा मांडव से लहूलुहान