भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज्योति-केन्द्र / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:32, 3 सितम्बर 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= तारों के गीत / महेन्द्र भटनाग...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


    ज्योति के ये केन्द्र हैं क्या ?
    ये नवल रवि-रश्मि जैसे, चाँदनी-से शुद्ध उज्ज्वल,
    मोतियों से जगमगाते, हैं विमल मधु मुक्त चंचल !
    श्वेत मुक्ता-सी चमक, पर, कर न पाये नभ प्रकाशित,
    ज्योति है निज, कर न पाये पूर्ण वसुधा किन्तु ज्योतित !
    कौन कहता, दीप ये जो ज्योति से कुटिया सजाते ?
    ये निरे अंगार हैं बस जो निकट ही जगमगाते !
    ये न दे आलोक पाये बस चमक केवल दिखाते,
    झिलमिलाते मौन अगणित कब गगन-भू को मिलाते ?
 ज्योति के तब केन्द्र हैं क्या ?