भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मग़रूरी में किसको किसका ध्यान रहा / विजय राही

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:33, 25 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय राही |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मग़रूरी में किसको किसका ध्यान रहा ।
दरिया भी अपने को सागर मान रहा ।

मेरा क़ातिल मेरे अन्दर था लेकिन,
मरते दम तक मैं उससे अंजान रहा ।

दुख ने ही जीवनभर साथ दिया मेरा ,
सुख तो केवल दो दिन का महमान रहा ।

जो भी तर थे पारावार मिला उनको,
और प्यासों के हिस्से रेगिस्तान रहा ।

वो भी मुझको दो दिन में ही भूल गया,
मेरा भी आगे रस्ता आसान रहा ।