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अबुझ / महेन्द्र भटनागर

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ये कब बुझने वाले दीपक ?
अविराम अचंचल, मौन-व्रती ये युग-युग से जलते आये,
लाँघ गये बाधाओं को, ये संघर्षों में पलते आये,
रोक न पाये इनको भीषण पल भर भी तूफ़ान भयंकर
मिट न सके ये इस जगती से, आये जब भूकम्प बवंडर !
झंझा का जब दौर चला था लेकर साथ विरुद्ध-हवाएँ,
ये हिल न सके, ये डर न सके, ये विचलित भी हो ना पाए!
ये अक्षय लौ को केन्द्रित कर हँस-हँस जलने वाले दीपक !
ये कब बुझने वाले दीपक ?