भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बसन्ती बदरवा / सुभाष चंद "रसिया"
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:35, 27 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष चंद "रसिया" |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बिंदिया शोभेले तोहरी लीलरवा।
कर इशारा, बुलावे कजरवा॥
पियर देहिया पियरा गइले सरसो।
इंतजार में तोहरी बीत गइले बरसो।
घटा घेरे-घटाघेरे बसन्ती बदरवा॥
बिंदिया शोभेले तोहरी लीलरवा॥
गेहू गदरा गइले महुआ कोचाइल।
बहे पुरवइया जियाबा घबराइल।
रस टपके-रस अमवा मोजरवा॥
बिंदियाँ शोभेले तोहरी लीलरवा॥
कनवा में शोभे तोहार कान बाली।
लालेलाले होठवा पर टेसू के लाली।
हाई पवनवा उडावेला अचरवा॥
बिंदियाँ शोभेले तोहरी लिलारवा॥
चलेलु डगरिया खनक जाला पायल।
रूपवा के तोहरी दुनिया बा कायल।
ये रसिया पागल बनावेला अचरवा॥
बिंदियाँ शोभेले तोहरी लीलरवा॥