भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीत के परचम / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:47, 29 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मन को लुभा रहे हैं,
ये फूल गुलमोहर के।
ये लाल-लाल लुच-लुच
डालों पर डोलते हैं।
कुछ ध्यान से सुनों तो,
शायद ये बोलते हैं।
स ब लोग देखते हैं,
इनको ठहर-ठहर के।
चुन्ना ने एक अंगुली,
उस और है उठाई।
देखा जो गुलमोहर तो,
चिन्नी भी खिलखिलाई।
मस्ती में धूल झूमे,
नीचे बिखर-बिखर के।
हँसते हैं मुस्कुराते,
ये सूर्य को चिढ़ाते।
आनंद का अंगूठा,
ये धूप को दिखाते।
हैं जीत के ये परचम,
उड़ते फहर-फहर के।