भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्यों? कैसे? / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:52, 29 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हुए चार दिन नहीं सुनाई,
नानी मुझे कहानी।
चिड़ियों वाली आज सुना दो,
कैसे खातीं खाना।
दांत नहीं फिर भी चब जाता,
कैसे चुनका दाना।
कैसे घूँट चोंच में भरती,
कैसे पीतीं पानी।
कैसे छुपा बीज धरती में,
पौधा बन जाता है।
दिन पर दिन बढ़ते-बढ़ते वह,
नभ से मिल आता है।
बिना थके दिन रात खड़ा वह,
कैसे औघड़ दानी।
सुबह-सुबह से सूरज कैसा,
दुल्हन-सा शर्माता।
किन्तु दोपहर होते ही क्यों,
अंगारा बन जाता।
मुंह सीकर क्यों खड़ी हो नानी,
कुछ तो बोलो वाणी।
नल की टोंटी में से पानी,
बाहर कैसे आता।
बनकर धार धरा पर गिरना,
कौन उसे सिखलाता।
घड़ों, मटकियों की नल पर क्यों,
होती खींचातानी?