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धारावाहिक रामायण / चन्दन सिंह

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धन्यवाद, श्रीराम !

रावण के वध के लिए, धन्यवाद !
और
महँगाई के ज़माने में हमारे बच्चों को
तीर -धनुष एक मुफ़्त का खिलौना देने के लिए
धन्यवाद !

मशहरी लगाने वाली
बांस की पुरानी लगभग विस्मृत फट्टियाँ
घर के अन्धेरे में कहीं सोई पड़ी थीं
बरसों बाद उन्हें जगाया गया
और जैसे ही
लम्बी नीन्द से जगने पर उनकी अँगड़ाई
धनुष के आकार की हुई
डोरियों से कसकर बाँध दिया दिया गया उन्हें
हम सबकी ओर से, धन्यवाद !

बस,बच्चों की कुछ आँखों
कुछ अभागी गौरैयों
रंग बदलते हुए पकड़े जाने वाले
कुछ मूर्ख गिरगिटों को छोड़
हम सबकी ओर से, धन्यवाद !

ये निशाना बनेंगे तीर के
इन्हें लगेगी चोट
लेकिन इन्हें छोड़
हम सबकी ओर से
जो तीर के निशाने से बाहर रहेंगे
धन्यवाद !

धन्यवाद, श्रीराम !
धन्यवाद !