भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शीत लहर फिर आई / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:12, 29 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

गलियों में शोर हुआ,
शोर हुआ सडकों पर।
शीत लहर फिर आई।

भजियों के दौर चले,
कल्लू के ढाबे में।
ठण्ड नहीं आई है,
फिर भी बहकावे में।
गरम चाय ने की है,
थोड़ी-सी भरपाई।
शीत लहर फिर आई।
मुनियाँ की नाक बही,
गीला रूमाल हुआ।
शाळा में जाना भी,
जी का जंजाल हुआ।
आँखों की गागर ही,
आंसू से भर आई।
शीत लहर फिर आई।
दादाजी, दादी को,
दे रहे उलहने हैं।
स्वेटर पहिनो, हम तो,
चार-चार पहिने हैं।
अम्मा भी सिगड़ी के,
कान ऐंठ हैआई।
शीत लहर फिर आई।