भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हुआ रिश्ता जो बदतर देख लेना / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:28, 3 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=ग़ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सभी के हाथ खंज़र देख लेना॥

मुहब्बत जब खिलेगी फूल बनके
सुहाना होगा मंज़र देख लेना॥

नहीं पूरे हुए अरमान दिल के
कोई हसरत जगा कर देख लेना॥

बसी सूरत तुम्हारी दिल में मेरे
कभी नजरें मिला कर देख लेना॥

झलकती है निगाहों से शराफ़त
जरा नजदीक आकर देख लेना॥

नज़र आये जो कोई चाँद सूरत
उमड़ आये समन्दर देख लेना॥

फ़रिश्ते रूबरू होंगे तुम्हारे
जहाँ से भी गुजर कर देख लेना॥