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चाँद नभ में न मुस्कुराया क्यों / रंजना वर्मा

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चाँद नभ में न मुस्कुराया क्यों।
अश्रु आकाश ने बहाया क्यों॥

जो नहीं सत्य हो कभी ऐसा
स्वप्न वह नैन में समाया क्यों॥

रोज रहता बहार का मौसम
झूठ यह था हमें बताया क्यों॥

साँझ होते ही हाथ छोड़ दिया
साथ तुमने नहीं निभाया क्यों॥

स्वार्थ अरु वैर की नदी उमड़ी
बाँध कोई नहीं बनाया क्यों॥

न्याय की राह पर रखा जब तो
पाँव पीछे था फिर हटाया क्यों॥

हारना ही लिखा जो किस्मत में
जीत का ख्वाब फिर दिखाया क्यों॥