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फूल उल्फ़त के खिलाता ये वतन / रंजना वर्मा
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फूल उल्फ़त के खिलाता ये वतन।
प्यार की सौगात लाया ये वतन॥
हौसलों की जो उड़ानें भर रहा
है सभी से दिल मिलाता ये वतन॥
हैं यहीं मौसम बदलते इस तरह
है जमाने में निराला ये वतन॥
जग तशद्दुद से हुआ बेचैन है
बन रहा सबका सहारा ये वतन॥
खिल रही है जो चमक आकाश में
बस वही नन्हा सितारा ये वतन॥
इसके कदमों में लुटा दें मन बदन
जान से प्यारा हमारा ये वतन॥
था हलाहल जो जमाने ने दिया
पी गया वह जहर सारा ये वतन॥