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मुहब्बत का असर जाता कहाँ है / रंजना वर्मा

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मुहब्बत का असर जाता कहाँ है।
ये दिल हो बेख़बर जाता कहाँ है॥

चली आँधी उठा तूफ़ान कुछ भी
नहीं आता नज़र जाता कहाँ है॥

कई सदियों से देखी राह जिसकी
न मिल पायी ख़बर जाता कहाँ है॥

बहुत मुश्किल है जीना हमने माना
मगर मुँह मोड़ कर जाता कहाँ है॥

न हो मायूस ग़र पायी न मंजिल
जरा कर ले सबर जाता कहाँ है॥

हमेशा तो नहीं रहता अँधेरा
अभी होगी सहर जाता कहाँ है॥

अगर है आशियाँ उजड़ा भी तो क्या
बना फिर अपना घर जाता कहाँ है॥