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पास नहीं क्यों मेरे आते / रंजना वर्मा

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हो कितना मुझको तड़पाते।
पास नहीं क्यों मेरे आते?

रात जगी तेरे सपनों में,
ढूँढ फिरी गैरों अपनों में।

पास नहीं हो पर जाने क्यों
इतना हो इस मन को भाते।
पास नहीं क्यों मेरे आते?

कभी मिलो भूली यादों में,
टूट गये सपनों वादों में।

दूर दूर रह कर यूं मुझसे
क्यों हो मुझको बहुत सताते?
पास नहीं क्यों मेरे आते?

काश दूर हो अपनी दूरी,
हो जायें सपने सिंदूरी।

मिलन बिंदु तक जो ले जाये
ऐसी राह न मुझे बताते।
पास नहीं क्यों मेरे आते?

खेल करोगे कब तक बोलो,
अब अपना अवगुंठन खोलो।

लुका छुपी के खेल-खेल कर
सदा रहे हो हृदय लुभाते।
पास नहीं क्यों मेरे आते?

सूना सूना मन का आँगन,
अब तो आजा ओ मनभावन।

नयन मिलन के दीप जलाते।
पास नहीं तुम फिर भी आते॥