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कैसे कहूँ चले भी आओ / रंजना वर्मा
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कैसे कहूँ-चले भी आओ॥
तुम अतीत के राजकुँवर हो
वर्तमान की हूँ मैं दासी,
नीलांबर के सजल मेघ तुम
मैं चातकी युगों की प्यासी।
प्रेम पिपासित उर पर साथी
स्वाति बूँद आकर बरसाओ।
कैसे कहूँ-चले भी आओ॥
तड़प रहे मन प्राण मिलन को
रही छटपटा कंचन काया,
श्वास श्वास में नाम तुम्हारा
यादों ने कितना तड़पाया।
पल पल मरती जाती आशा
प्रणय धैर्य से इसे जिलाओ।
कैसे कहूँ-चले भी आओ॥