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लम्बी बड़ी कठिन हैं रातें / रंजना वर्मा

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इंतजार से बोझिल पलकें लंबी बड़ी कठिन है रातें॥

शाम सुरमई गीला आंचल
आँखों में पथ की बेताबी,
हर आहट पर धड़क उठे उर
बिखरे मन पर रंग गुलाबी।

उगता चाँद नहीं आशा का घिरती नैनों में बरसातें।
लंबी बड़ी कठिन हैं रातें॥

बार-बार मन पढ़ता जाता
धुली हुई पाती के आखर,
सूने खेत बाट सब सूने
सूने आँगन सूनी बाखर।

साथ न कोई मन करता जाता है खुद से कितनी बातें।
लंबी बड़ी कठिन है रातें॥

जगे नयन मन जगी प्रतीक्षा
पल पर कटे नींद की डोरी,
बूँद बूँद विष से प्रहरों को
पिए रात भर विकल चकोरी।

आता नहीं भेज देता है न जाने क्यों अपनी यादें।
लंबी बहुत कठिन है रातें॥