भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज न मुझे पुकारो प्रियतम / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:26, 4 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=गीत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज न मुझे पुकारो प्रियतम
आज स्वयं में खो जाने दो॥

आज लगा जैसे जीवन का सपना टूट गया,
अमिय सुधा से भरा कलश हाथों से छूट गया।
पल भर में जैसे सदियों का सम्बल रूठ गया
चौराहे पर घड़ा अचानक मन का फूट गया।

ऐसे में प्रिय मौन साथ देगा बस मेरा
मत छेड़ो अब मन की वीणा जो होता है हो जाने दो।
आज स्वयं में खो जाने दो॥

आज लगे जैसे साँसों की डोर कटी जाये
यत्न करूं पर अब न पीर की कथा रटी जाये,
मेरे हिस्से की खुशियाँ भी आज बंटी जाये
यादों की दुनिया भी मुझसे दूर हटी जाये।

अब तो केवल अश्रु बिंदु हैं साथी मेरे
प्रतिबंधों में अब मत बाँधो संचित सलिला को जाने दो।
आज स्वयं में खो जाने दो॥