किन्तु थरथराते अधरों पर तेरा नाम / रंजना वर्मा
जब जब दृष्टि पड़ी दर्पण पर तुमको ही मुस्काते देखा
किंतु थरथराते अधरों पर तेरा नाम नहीं आ पाया॥
पलक नहीं झँप सकी रैन कितनी ही बीती बन परछाईं
उमड़ा उर आकुल हो फिर भी अधरों की कलियाँ मुस्काई,
जीवन मृत्यु अनुबंधित सीमा बद्ध भाव प्रतिमाएँ
ऐंठ चुके स्वर अरमानों के रूढ़ि ग्रस्त रीतें हर्षाईं।
प्रतिबंधों में तड़प रही आत्मा के बंधन हुए न ढीले
विधि मुख से चल चुका किंतु मुझ तक पैगाम नहीं आ पाया।
तेरा नाम नहीं आ पाया॥
संयम और संकुचन के मिस बीते कितने पहर सलोने
मधुमय मृदुल भावनाओं को लगी प्रीति की लहर भिगोने
किंतु प्रेम की निश्छल काया विश्व दृष्टि में बनी कलंकित
रहा न सच विश्वस्त टूट कर लगे स्नेह के बंधन खोनें
प्रतिपल के उपधानों में जो जिया गया वह बना न मेरा
जीवन विषमय बना किंतु अधरों तक जाम नहीं आ पाया।
तेरा नाम नहीं आ पाया॥
कितना दुर्गम प्राण पन्थ भर गयी शूल से जिसकी काया
रही शुष्क मरुभूमि दूर तक नहीं वृक्ष या घन की छाया।
मृग जल की कर आस प्राण पंथी जीवन पथ पर है भटका
वही स्वप्न कल्पना आस है चाहो तो तुम कह लो माया
दुर्वह बंधन जकड़ रहे हैं नाग पाश बन कर जीवन को
मृत्यु आगमन हुआ किंतु पथ का आयाम नहीं आ पाया।
तेरा नाम नहीं आ पाया॥