भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

केले / लक्ष्मी खन्ना सुमन

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:53, 5 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मी खन्ना सुमन |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लो गुच्छे के गुच्छे केले
रसगुल्ले-से मीठे केले

लो लो चित्तीदार मुलायम
चीनी भरे बतासे केले

इधर-उधर मत फेंकों छिलके
फिसला वरन् गिराते केले

बच्चों की खातिर खुद पकते
हरी छाल के कच्चे केले

दादा-दादी, नाना-नानी
सबको अच्छे लगते केले

सूँड़ उठा दे बड़ी सलामी
जब हाथी को मिलते केले

ठेले से ले भागा बंदर
छील-छीलकर खाए केले

'सुमन' नहीं हर मौसम खिलते
पर हर मौसम मिलते केले