Last modified on 6 सितम्बर 2008, at 15:29

अंधेरी रात में दूधिया बारिश / वेणु गोपाल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:29, 6 सितम्बर 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वेणु गोपाल |संग्रह=हवाएँ चुप नहीं रहतीं / वेणु गोपाल }} <po...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


अंधेरी रात में सड़कों पर दूधिया बारिश हो रही है
और

लोग अपने-अपने बिस्तरों पर
लिहाफ़ों में दुबके
नींद आने से पहले
उन पहाड़ों के बारे में सोच रहे हैं
जिनकी ऊँचाइयों तक
बादल कभी नहीं पहुँच पाते। छत से

परे के आकाश को वे सिर्फ़ सपनों में
मंज़ूर करेंगे। और
सबेरे तक
वे पंख झड़ चुकेंगे
जिनके सहारे उन्होंने अतीत और भविष्य के बीच
उड़ानें भरी होंगी

रात में

(रचनाकाल :12.09.1975)