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योद्धा चश्मे ढूंढ़ रहे हैं / वेणु गोपाल
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कोई शक नहीं
कि वे ईमानदार योद्धा हैं।
अन्याय के खिलाफ़
आख़िरी साँस तक लड़ सकते हैं।
बशर्ते वह दिखे।
मुश्किल यही है
कि उन्हें कुछ भी
साफ़ नज़र नहीं आता।
आँखें कमज़ोर हैं।
और
इसीलिए वे
एक अरसे से
लड़ने की जगह
बाज़ार में चश्में ढूंढ रहे हैं।
(रचनाकाल : 04.08.1972)