भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वार्थ / ओम व्यास

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:07, 10 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम व्यास |अनुवादक= |संग्रह=सुनो नह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्वार्थ
अब भी मौजूद है, दुनिया में
तेजाब की तरह
अब भी
बूढ़े माँ बाप अच्छे लगते हैं,
बेटे बहू को जब होते है
उनकी गोद में बच्चे
अब भी
कमाते पुत्र के दुर्गुण
नहीं दिखते है
माँ बाप कों।
अब भी
सुहागन होने की गरज में
शराबी पति से पिटती है
उसकी 'औरत' ।
अब भी कमाऊ कुआंरी
लड़की शादी का प्रयास
नहीं करते घरवाले।
अब भी
नींद में खलल डालने वाली,
बाप की खांसी,
चौकीदार हो जाती है,
सूने पड़े मकान में।
क्योंकि,
समाज में
स्वार्थ का तेजाब
अभी बाकी है