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कल्पना चावल के प्रति / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
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दीदी हम बच्चे भारत के
तुमको शीश नवाते हैं
तुम महान भारत की नारी
यही सोच रह जाते हैं
सात साथियों को लेकर जब
कोलम्बिया यान चला था
किसे पता था आ जायेगी
बीच राह में हाय बला
पृथ्वी की परिक्रमा कि थी
तारो से भी बातें की थी
चाँद तुम्हारे साथ घूमता
रातें सभी चाँदनी की थी
सफल रहा अभियान तुम्हारा
पर तुम लौट नहीं पाईं
भाप बनी उड़ गई कहाँ हा।
तुम भी समझ नहीं पाईं
याद तुम्हारी करते हैं
श्रदा सुमन चढ़ाते हैं
तुम जैसे हम बने साहसी
प्रभु से यही मनाते हैं।