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आइस क्रीम वाला / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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ले लो आइस-क्रीम कह रहा।
देखो आ चला रहा पथ पर॥
कड़ी दोपहरी धरती तपती।
गरम गरम झोंके लू चलती॥
वस्त्र भीगकर तन से चिपके।
हुआ पसीने से ऐसा तर॥
देखो चला...
गाड़ी बन्द ढुलकती आती।
इसमें उसके श्रम की ढाती॥
शीतलता है साथ-साथ है तर॥
नहीं कंठ भी करता है तर॥
देखो चला...
ठंडक तो औरों के हित है।
गरमी में ही उसका हित है।
यही जीविका इसकी भाई।
इस पर इसका जीवन निर्भर॥
देखो चला...
लोग घरों में पड़े सो रहे।
सुख सपनों में पड़े खो रहे॥
लेकिन वह आवाज लगाता।
चलता ही जाता है पथ पर॥
देखो चला...