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बादल / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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मैं बादल हूँ, मैं बादल हूँ।
सागर ने मुझको जन्म दिया,
अम्बर ने पाला दूलराया।
धरती पर फसल उगा मैंने,
फूलों का आँचल सहलाया।
वर्षा कि झड़ी लगाता हूँ,
फिर आँखों से ओझल होता।
सब कहते हैं उड गया कहीं
मैं हंसता, सागर में सोता।
मैं उठकर ऊपर जाता हूँ,
फिर गरज गरज कर गहराता।
ओलों की वर्षा करता हूँ,
फिर पल में पानी बन जाता।
पानी की यही कहानी है,
जो रूप बदल मुझ में रहता।
रुई सा उड़ छा लेता नभ,
फिर पानी बन भू पर बहता।