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सूखे पत्ते / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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सूखे पत्तों! झरो झरो।
पतझर आया झरो झरो॥

शीत हवायें चलती हैं।
तुम्हें उड़ाये फिरती हैं॥

बूंदें तुम पर गिरती हैं।
चोट करारी करती हैं॥

झट डाली से गिरते हो।
धरती पर आ पड़ते हो॥

तुमने मौज उड़ाई है।
पाई बहुत बड़ाई है॥

बीता मौसम नहीं डरो।
प्रिय बसन्त की बात करो॥