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मोर - 3 / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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वन में नाच रहा है मोर।
गहरी नीली गरदन इसकी।
मस्ती में लहराती॥
सिर पर सुन्दर मुकुट सुहाना।
चाल बड़ी मदमाती॥
सतरंगे हैं पंख सुहाने।
छाता बन जाता सब ओर।
वन में नाच रहा है मोर॥
जब छाते हैं बादल नभ में
यह हो उठता है मतवाला।
कुहुक-कुहुक रटने लगता है।
सबका मन करता मतवाला॥
प्रिय इसको बादल का शोर।
वन में नाच रहा है मोर॥