Last modified on 12 अप्रैल 2020, at 15:18

लालन उठ जा भोर हो गयी / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:18, 12 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोजिनी कुलश्रेष्ठ |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लालन उठ जा भोर हो गयी
गली गली गुलजार हो गयी
धो ले झट निंदराई आँखें
कमल कली-सी भीगी पांखे
कीची-कीची कउआ खाय
दूध मलाई लालन खाय
सूर्य देवता आये हैं
रथ पर चढ़ कर आये हैं
दिन भर अब ये यहीं रहेंगे
जग को रोशन किये रहेगे
शाम ढले ही घर जायेंगे
तब ये माँ के पास रहेंगे
भेजेगी कल पास हमारे
उजले होंगे सब घर द्वारे