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अपना देश बढ़ा है आगे / मधुसूदन साहा

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अपना देश बढ़ा है आगे
सीना ताने शान से।
चारों ओर नई किरणों की
फैली उजली धूप है,
श्रम के हाथों से निखरा अब
धरती का हर रूप है,
सारे अंधकार भागे हैं
अनुशासन के ज्ञान से।
सभी काम में लगे हुए हैं,
खेतों में, खलिहान में,
पूरा देश लगा है देखो
इक नूतन अभियान में,
सैनिक सावधान सीमा पर
 डटे हुए चट्टान-से।
चीजें वही पुरानी, फिर भी
अनुपम नूतन खेल है,
इंजन पहलेवाला, चलती
ठीक, समय से रेल है,
अमन-चैन रहता है जग में
शासन के सम्मान से।

तोड़-फोड़ से कभी न होता
बंधु राष्ट्र-निर्माण है,
जिसकी पूजा से सब मिलता
श्रम वह देवोद्यान है,
भारत के कण-कण को भर दें
खुशियों की मुसकान से।