भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रोज सबेरे / मधुसूदन साहा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:39, 15 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुसूदन साहा |अनुवादक= |संग्रह=ऋष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

रोज सबेरे चिड़िया आती,
चीं-चीं कर आवाज लगाती
देखो, सूरज निकल गया है
धूप द्वार पर तुम्हें बुलाती।

आओ, चलो दूर तक टहलें,
खुली हवा में पल भर रह लें
किरणों से कुछ उनका सुन लें
फूलों से कुछ अपना कह लें

सचमुच लगता बड़ा सुहाना,
सुबह नदी का शांत मुहाना,
जो उठ जाता सबसे पहले
उसने ही इसका सुख जाना।

सुबह-सुबह भौरों का गुंजन,
फूलों का करता मन-रंजन,
मंदिर के मंत्रोच्चारण से
होता है सबका भय-भंजन।