Last modified on 15 अप्रैल 2020, at 15:40

पर्यावरण बचाती मैना / मधुसूदन साहा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:40, 15 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुसूदन साहा |अनुवादक= |संग्रह=ऋष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रोज सबेरे आती मैना,
मीठे बोल सुनाती मैना।
कीड़े जहाँ दिखाई पड़ते,
झट से चट कर जाती मैना।
उसे सफाई अच्छी लगती,
टब में रोज नहाती मैना।
उसको साथ हमारा भाता,
हमको भी है भाती मैना।
घर में जो जैसा गाता है,
वैसा ही है गाती मैना।
जहाँ जगह मिल जाती घर में,
खोंता वहीं बनाती मैना।
खेतों में जा फल के पीछे,
चक्कर रोज लगती मैना।
कीट-पतंगे जो मिल जाते,
पकड़-पकड़कर खाती मैना।
दूषित होने से पहले ही,
पर्यावरण बचाती मैना।