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काजल से कजरारे बादल / मधुसूदन साहा
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आ रे बादल,
आ रे बादल,
काजल से कजरारे बादल!
धरती कब से लगती प्यासी
जंगल-जंगल पड़ी उदासी
अपनी बूँदों
के छींटे से
प्राणों को सरसा रे बादल!
नदिया तुमको रोज बुलाती
गुन-गुन, गुन-गुन गाना गाती
पुरवाई के
पंखों पर चढ़
शीतल जल बरसा रे बादल!
पानी दे दे, दे-दे पानी,
खेलेंगे मिलकर गुड़धानी
झुलसे पेड़ों
के पत्तों को
अब मत यूँ तरसा रे बादल,
आरे बादल आ रे बादल,
काजल-से कजरारे बादल!