भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादल मादल बजा रहा है / मधुसूदन साहा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:44, 15 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुसूदन साहा |अनुवादक= |संग्रह=ऋष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बादल मादल
बजा रहा है
वर्षा नाच रही है छम छम।
आसमान पर काले-काले
मेघ घूमते बन मतवाले।
खुशियाँ अंजुरी
में भर-भर कर
आया है बूंदों का मौसम।
पेड़ों की डाली हरियाई
अगवानी करती पुरवाई
टहनी-टहनी
पत्ते-पत्ते
बिजली छेड़ रही है सरगम।
दादुर रह-रह दाद दे रहे
नाविक अपनी नाव खे रहे
फसलों की ले
चाह ह्रदय में
सोंधी मिट्टी करती गमगम।
हर आँगन नहलाती वर्षा
सबका मन हर्षाती वर्षा
तपिश ह्रदय की
कम होती है
जब पड़ता है पानी झमझम।